Bhoop Biloke Jabahin Muni Aavat

भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत
उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत

मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा
बार बार पद रज धरि सीसा

कौसिक राउ लिए उर लाई
कहि असीस पूछी कुसलाई

कहि असीस पूछी कुसलाई (कहि असीस पूछी कुसलाई)

पुनि दंडवत करत दोउ भाई
देखि नृपति उर सुखु न समाई

सुत हियँ लाइ दुसह दु:ख मेटे
मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे

मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे (मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे)
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