O Phoolon Ke Deshwali

ओ फूलों के देश वाली
अंग अंग तेरा फूलों वाला
जैसे गुलाबो की हो माला
पंछी सी चके फसलो सी लहके
सरसों सी फूल चंपा सी महक
आँचल में बिजली
नैन में चपलता
चल में हिरनी की चंचलता

जी चाहता है तुझको बिठाकर
पतझड़ का दर्द कहूँगा
अब तो मै चुप ना रहूँगा
तू चिर यौवन अन्नत हो
क्यों की तुम ऋतु बसंत हो
मुझको तुम्हारा ही है इंतज़ार
क्या तुमको मालूम है
पतझड़ को कितना होगा
बसंत की ऋतु से प्यार
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