कहा से लेके आई है कहा मजबूरियाँ मेरी
ज़ुबान खामोश आँखें कह रही है दास्तान मेरी
मेरी तक़दीर के मालिक मेरा कुछ फ़ैसला कर दे
बुरा चाहे बुरा कर दे भला चाहे भला कर दे
मेरी तक़दीर के मालिक
मुझे इतना बता दे मैं कहा जाऊ किधर जाऊ
कही जाने से अच्छा है तेरे कदमों में मर जाऊ
सहारा दे नही सकता तो फिर बेआसरा कर दे
मेरी तक़दीर के मालिक
नही दुनिया में मेरा दूसरा कोई ठिकाना हैं
मुझे तो बस यही अपना मुक़द्दर आज़माना हैं
लिया हैं दिल तो मेरी जान भी तंन से जुदा कर दे
मेरी तक़दीर के मालिक
मुझे बर्बाद करने में जो होता हो भला तेरा
बुझा दे अपने हाथों से चरागे ज़िंदगी मेरा
नही कोई गीला तुझसे अगर चाहे फनाह कर दे
मेरी तक़दीर के मालिक
Log in or signup to leave a comment
Login
Signup