इंसान क्या
इन्सान क्या जो काम
किसी और के न सके
इंसान क्या
इन्सान क्या जो काम
किसी और के न सके
वो दिप क्या और कोई
दिप न जला सके
इन्सान क्या जो काम
पैदा सभी को एक
ही भगवन ने किया
छोटे बड़े का फ़र्ज़
तो इंसान ने किया
दिल का ही जो गफरीब
हो वो क्या आमिर हे
दिल वो है जिसने
दूसरों का दर्द ले लिया
दिल वो है जिसने
दूसरों का दर्द ले लिया
वो ही है बड़ा
वो ही है बड़ा
गैर को भी जो
गले लगा सके
इंसान क्या
इन्सान क्या जो काम
किसी और के न सके
इंसान क्या
सूरज सभी को देता
है एक जैसी रौशनी
सबके लिए है एक सी
चंदा की चांदनी
मालिक सभी को देखता
है एक नजर से
क्यों हम ही जात पात की
है देखते कमी
क्यों हम ही जात पात की
है देखते कमी
नादाँ है वो
नादाँ है वो जिसकी
समझ में ये भी न सके
इंसान क्या
ले देख आज कौन
तेरे काम आ गया
तेरे बुझे चिराग
को फिर से जला गया
अपने थे जो अपनी की
न बून्द दे सके
जो गैर था वही तुझे
अमृत पिला गया
जो गैर था वही तुझे
अमृत पिला गया
पत्थर है अगर
पत्थर है अगर अब भी
तू ये भेद म मिट सके
इंसान क्या
इन्सान क्या जो काम किसी
और के न सके
इंसान क्या