मैं भूल जाऊँ तुम्हें
मैं भूल जाऊँ तुम्हें
अब यही मुनासिब है
मैं भूल जाऊँ तुम्हें
अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो
किस तरह भूलूँ
मगर भुलाना भी चाहूँ तो
किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फ़िर भी
हकीकत हो कोई ख्वाब नही
यहाँ तो दिल का ये आलम है
क्या कहूँ कमबख़्त
भुला सका ना ये वो सिलसिला
जो था भी नहीं
भुला सका ना ये वो सिलसिला
जो था भी नहीं
वो इक ख्याल जो आवाज़ तक
गया ही नहीं
वो एक बात जो मैं
कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त जो हममें कभी
रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब जो कभी
हुआ ही नहीं
अगर ये हाल है दिल का तो
कोई समझाए
अगर ये हाल है दिल का
तो कोई समझाए
तुम्हें भुलाना भी चाहूँ
किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फ़िर भी
हकीकत हो कोई ख्वाब नही
कि तुम तो फ़िर भी
हकीकत हो कोई ख्वाब नही
कि तुम तो फ़िर भी
हकीकत हो कोई ख्वाब नही
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