मुद्दत हुई है यार को
मुद्दत हुई है यार को, मेहमान किए हुए
जोश ए क़दह से बाज़म चीराघान किए हुए
जी ढूनडता है
जी ढूनडता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात दिन
जी ढूनडता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात दिन
बैठे रहे तसाउर ए जानां किए हुवे
बैठे रहे तसाउर ए जानां किए हुवे
जी ढूनडता है फ्िए वोही फ़ुर्सत के रात दिन
फिर जी में है की दर पे किसी के पड़े रहें
फिर जी में है की दर पे किसी के पड़े रहें
सर ज़र ए बार ए मिन्नत ए
सर ज़र ए बार ए मिन्नत ए दरबान किए हुवे
जी ढूनडता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात दिन
माँगे है फिर किसी को लब ए बां पर हवस
माँगे है फिर किसी को लब ए बां पर हवस
ज़ुलफ ए सियाह रुख़ पे परेशान किए हुवे
जी ढूनडता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात दिन
गॅलाइब हमें ना च्छेद की फिर जोश ए ाश्क़ से
बैठे हैं हम तहय्या ए तूफान किए हुवे
जी ढूनडता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात दिन
बैठे रहे तसाउर ए जानां किए हुवे
बैठे रहे तसाउर ए जानां किए हुवे
जी ढूनडता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात दिन
जी ढूनडता है
जी ढूनडता है
जी ढूनडता है
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