बड़ी उदास है वादी, गला दबाया हुआ है किसी ने ऊँगली से
ये साँस लेती रहे, पर ये साँस ले ना सके
दरख्त उगते हैं कुछ सोच-सोच कर जैसे
जो सर उठाएगा पहले वो ही एक कलम होगा
झुका के गर्दनें आते हैं, अब्र नादिम हैं
झुका के गर्दनें आते हैं, अब्र नादिम हैं
के धोए जाते नहीं खून के निशाँ उनसे
हरी-हरी है, मगर घास अब हरी भी नहीं
जहाँ पे गोलियाँ बरसी ज़मीं भरी भी नहीं
वो migratory पंछी जो आया करते थे
वो सारे ज़ख़्मी हवाओं से डर के लौट गए
बड़ी उदास है वादी, ये वादी है कश्मीर
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